होली का त्योहार फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी के दिन मनाया जाता है। । होली का त्योहार भी राई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिये महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। आइए जानते है होली की कथा

होली की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार असुर राज हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्नाद एक परम विष्णु भक्त था। प्रह्लाद का पिता उससे इसी बात से नफरत करता था और प्रह्लाद की हत्या करना चाहता था। उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयत्न किए लेकिन वह प्रह्लाद को मार नहीं सका। इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका की भी मदद ली। असुर राज हिरण्यकश्यण ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या करके अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। उसने यह वर मांगा थी की उसे जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य, रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके।

इसी कारण से उसमें अत्याधिक अहंकार आ गया था और वह चाहता था कि धरती पर सिर्फ उसी की ही पूजा हो। लेकिन प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। उसने कई बार प्रह्लाद को विष्णु भक्ति न करने को कहा लेकिन प्रह्लाद ने उसकी एक न मानी। उसने कई असुरों द्वारा प्रह्लाद को मारने का प्रयत्न किया लेकिन वह हर बार ही असफल रहा। जिससे वह परेशान रहने लगा। जब उसकी बहन होलिका ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो उसने अपनी बहन को सारी बात बता दी।

होलिका ने अपने भाई से कहा कि वह चिंतित न हो क्योंकि उसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने अपने इसी वरदान का फायदा उठाया और प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई लेकिन होलिका का यह वरदान उसके कोई काम न आ सका क्योंकि होलिका उस अग्नि से स्वंय ही जलकर भस्म हो गई। इस प्रकार से उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और तब ही से होली का पर्व मनाया जाने लगा।

होलिका दहन पूजा–विधि

  1. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें.
  2. अब अपने आस-पास पानी की बूंदे छिड़कें.
  3. गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं.
  4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटा पानी रखें.
  5. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें.
  6. अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं.
  7. अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें.
  8. इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं.
  9. भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांचों अनाज चढ़ाएं
  10. अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं.
  11. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें.
  12. गोबर के बिड़कले को होली में डालें.
  13. आखिर में गुलाल डालकर लोटे से जल चढ़ाएं.